नई दिल्ली। वर्ष 2017-18 में जब भारतीय बैंकिंग सेक्टर में फंसे कर्जे यानी नॉन-परफार्मिंग एसेट्स (एनपीए) का स्तर 10 फीसद (बैंकों की तरफ से वितरित कुल कर्जे के अनुपात में) हो गया था, तब कई घरेलू और विदेशी वित्तीय एजेंसियों ने भारतीय बैंकिंग की मर्सिया पढ़नी शुरू कर दी थी। लेकिन अब हालात पूरी तरह से नियंत्रण में है। देश के सभी बड़े बैंकों का शुद्ध एनपीए का स्तर एक फीसद से नीचे आ चुका है।
सरकार की तरफ से जो आंकड़े सोमवार को सदन में पेश किये गये उससे भी संकेत मिलते हैं कि कर्ज वसूली का सिस्टम सही तरीके से काम कर रहा है। निकट भविष्य में एनपीए की समस्या के फिर से सिर उठाने की संभावनाएं नजर नहीं आ रही है। वित्त मंत्रालय की तरफ से लोकसभा में बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों में 6,82,286 करोड़ रुपये की राशि की वसूली की बकायेदारों से की जा चुकी है जिसने एनपीए के स्तर को नीचे लाने में अहम भूमिका निभाई है।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने एक प्रश्न के लिखित जवाब में बताया है कि “पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय बैंकों ने कुल 1,70,107 करोड़ रुपये की राशि को बट्टे खाते में डाला है। जबकि पिछले तीन वित्त वर्षों की बात करें तो यह राशि 5,53,057 करोड़ रुपये है। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि सरकार के स्तर पर बैंकों के बकाए कर्ज की राशि को बट्टे खाते में नहीं डाला जाता बल्कि यह कदम बैंकों के स्तर पर उठाया जाता है। साथ ही बट्टे खाते में डालने का मतलब यह नहीं है कि उक्त खाताधारकों से फिर उस कर्ज की वसूली नहीं की जाएगी। बैंक आगे भी कर्ज वसूली की प्रक्रिया जारी रखते हैं।”