नई दिल्ली। केंद्र सरकार की बड़ी-बड़ी वित्तीय योजनाएं सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है क्योंकि इससे राज्यों की खर्च करने की आजादी पर असर पड़ता है। यह बात आरबीआई ने राज्यों के बजट पर जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में कही है। केंद्रीय बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति में सुधार की बात कही है लेकिन उसने पहली बार केंद्र पोषित आर्थिक योजनाओं के दूरगामी वित्तीय दुष्परिणामों पर बात की है।
कई राज्यों ने पहले भी उठाए हैं सवाल
आरबीआई ने सीधे तौर पर यह भी कहा है कि केंद्र पोषित योजनाओं के समायोजन करने से सिर्फ राज्यों पर ही नहीं बल्कि केंद्र पर भी वित्तीय बोझ कम करने में मदद मिलेगी। आरबीआई की इस रिपोर्ट ने एक ऐसे मुद्दे को छेड़ दिया है जिसे महसूस तो कई राज्य करते हैं लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट तौर पर बोलता नहीं है।
इस समय केंद्र पोषित स्कीमों (सीएसएस) की संख्या 75 है जबकि वर्ष 2016 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक उप-समूह की सिफारिशों के आधार पर 28 स्कीमों की मंजूरी दी थी। तब उप-समूह ने सीसीएस की संख्या किसी भी सूरत में 30 से ज्यादा नहीं होने की बात कही थी।