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राजकोषीय घाटा नियंत्रित करने के लिए बने दीर्घकालिक नीति, उद्योग जगत ने दिया सुझाव

नई दिल्ली। कोराना काल के दौरान देश के राजकोषीय संतुलन की स्थिति बिगड़ गई थी, जो अब काफी हद तक काबू में है। ऐसे में उद्योग जगत चाहता है कि सरकार ना सिर्फ राजकोषीय स्थिति को सुधारने की और कोशिश करे, बल्कि अगले 10 से 25 वर्षों को ध्यान में रखते हुए राजकोषीय नीति तैयार करे।

हाल के वर्षों में ब्राजील ने 10 वर्षों के लिए और ब्रिटेन ने 25 वर्षों की दीर्घकालिक राजकोषीय व वित्तीय नीति का एजेंडा जारी किया है। यह बात देश के प्रमुख उद्योग चैंबर सीआईआई ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेजे अपने मेमोरेंडम में दिया है।

बजट के लिए विमर्श का दौर शुरू
वित्त मंत्री ने पिछले हफ्ते ही आम बजट 2025 को लेकर विमर्श का दौर शुरू किया है। इसमें कहा गया है कि वित्त मंत्री को राजकोषीय घाटे के लिए वर्ष 2025 में 4.9 फीसद और वर्ष 2026 में 4.5 फीसद के लक्ष्य पर ही काम करना चाहिए। घाटे को बहुत ज्यादा कम करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।

सीआईआई ने देश पर बढ़ते कर्ज का मुद्दा भी उठाया है, जिस पर आम तौर पर कोई नहीं बोलता। इसने कहा है कर्ज के बोझ (जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात) को कम करने के लिए भी राजकोषीय घाटे को एक निश्चित स्तर पर रखना जरूरी है। केंद्र सरकार को कर्ज के स्तर को दीर्घकालिक तौर पर कम करने की भी नीति लागू करनी चाहिए।

कर्ज का बोझ कम करने का सुझाव
सीआईआई का सुझाव है कि वर्ष 2030-31 तक कर्ज के बोझ को जीडीपी के मुकाबले घटा कर 50 फीसद करने के लक्ष्य के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए। इसे आगे चल कर 40 फीसद पर लाने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए। बताते चलें कि वर्ष 2023 में भारत पर कर्ज का अनुपात (जीडीपी के मुकाबले) 81.59 फीसद था। यह कोरोना काल (वर्ष 2021 वर्ष 2022) में राजस्व संग्रह की स्थिति के प्रभावित होने की वजह से हुआ था।

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