मुंबई। विजय मैथ्यू (अनुपम खेर) को मिसेज बक्शी (गुड्डी मारुति) पानी में कूदते हुए देखती हैं। सबको लगता है कि विजय इस दुनिया में नहीं रहा। चर्च में विजय का 30 साल पुराना दोस्त फली (चंकी पांडे) उसे याद करते हुए बताता है कि कैसे विजय ने तीन बार गरबा नाइट्स डांस में ट्राफी जीती थी। हालांकि विजय मरा नहीं होता है। वह उस रात अपने किसी दोस्त के घर जाकर रुक जाता है। मिसेज बक्शी को कोई गलतफहमी हुई थी।
विजय जब वह पेज देखता है, जिसमें फली ने उसकी उपलब्धियों के बारे में लिखा है,तो वह गुस्से में कहता है कि उसने नेशनल स्विमिंग चैंपियनशिप में तैराकी में उसके कास्य पदक जीतने की बात क्यों नहीं बताई? फिर वह एक पेज पर अपनी उपलब्धियां लिखने बैठता है, लेकिन उसे अपनी कोई और उपलब्धि नहीं मिलती। विजय के मोहल्ले से आदित्य (मिहिर अहूजा) ट्रायथलान में भाग लेने वाला है, जिसमें डेढ़ किलोमीटर तैराकी, 40 किलोमीटर साइकलिंग और 10 किलोमीटर की दौड़ लगानी होती है। विजय भी उसमें हिस्सा लेता है, ताकि दुनिया से जाने के बाद लोग उसकी इस उपलब्धि को याद रखें।
फिल्म का निर्देशन चकाचक
जहां कमर्शियल फिल्में बिना अच्छी कहानी के बड़े बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का दावा करते नहीं थक रही हैं,वहीं यह फिल्म साबित करती है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए बड़ा बजट नहीं, बल्कि अच्छी कहानी और साफ नीयत चाहिए। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद लिखने वाले निर्देशक अक्षय रॉय न ही कहानी में कहीं से चूकते हैं, न ही निर्देशन में। बुढ़ापे में चीयरलीडर बनकर साथ देने वाले हमसफर की कमी, सच्चे दोस्तों की जरुरत, खुद की पहचान को दोबारा खोजने का संघर्ष ऐसी कई बातों को छूते हुए फिल्म आगे बढ़ती है।