कोलकाता: पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने राज्य सरकार की विफलताओं पर उठ रहे सवालों से बचने के लिए नया कदम उठाया है। हाल ही में, कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले के बाद TMC की आलोचना बढ़ गई है। इस संदर्भ में, TMC ने ABP आनंदा, रिपब्लिक और TV9 जैसे प्रमुख मीडिया चैनलों पर अपने प्रवक्ताओं को भेजने से इनकार कर दिया है। पार्टी का कहना है कि ये चैनल बंगाल विरोधी एजेंडा चला रहे हैं और दिल्ली के ‘जमीनदारों’ के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा दे रहे हैं।
TMC ने अपने सोशल मीडिया पेज पर एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए आरोप लगाया कि ये मीडिया चैनल बंगाल की छवि को खराब करने का काम कर रहे हैं और उनके प्रमोटर और कंपनियों पर चल रहे मामलों के कारण ये चैनल इस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे हैं। पार्टी ने कहा कि वे इन चैनलों के साथ बहस में शामिल नहीं होंगे और बंगाल के लोगों से भी इन प्लेटफार्म पर दिखाए जा रहे पार्टी समर्थक व्यक्तियों से गुमराह नहीं होने की अपील की है। TMC का यह कदम मीडिया की आज़ादी पर भी सवाल खड़ा करता है। पार्टी ने उन चैनलों को बंगाल विरोधी घोषित किया है, जिनका लंबे समय से बंगाल में प्रकाशन होता आ रहा है, जैसे कि ABP आनंद, जो कि एक प्रमुख बंगाली मीडिया समूह का हिस्सा है। पश्चिम बंगाल में पत्रकारों पर हमले और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले की घटनाएँ कोई नई बात नहीं हैं। हाल ही में संदेशखाली में एक रिपोर्टर को बंगाल पुलिस ने लाइव टीवी पर उठा लिया था, और कई अन्य पत्रकारों के साथ भी दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आई हैं।
भाजपा ने TMC के इस फैसले पर आलोचना की है। भाजपा का कहना है कि TMC हमेशा तानाशाही रवैया अपनाती रही है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध करती है। भाजपा ने आरोप लगाया कि TMC का यह कदम उनकी बढ़ती निराशा और सच्चाई का सामना करने में असमर्थता को दर्शाता है। भाजपा का कहना है कि TMC सच्चाई से डरती है, लेकिन सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता। इस पर सवाल उठता है कि अगर मीडिया प्रदेश में हो रहे महिला विरोधी अपराधों को उठाता है, तो क्या सत्ताधारी पार्टी उसे प्रदेश विरोधी करार देगी? क्या वे अपराधी प्रदेश विरोधी नहीं हैं, जो महिलाओं का शोषण कर रहे हैं? क्या यही INDIA गठबंधन के दलों का चरित्र है, जो लोकसभा चुनाव के समय भी कई एंकरों का बहिष्कार कर चुके हैं?