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कानूनी सहायता मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त की सुविधा के लिए जारी किए दिशा-निर्देश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि आपराधिक मुकदमे में स्वयं को बचाना और कानूनी सहायता प्राप्त करना अभियुक्त का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार उसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मिला है।

अगर अभियुक्त को प्रभावी कानूनी सहायता नहीं मुहैया कराई जाती है, तो उसे अनुच्छेद 21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। सिर्फ नाम के लिए कानूनी सहायता प्रदान करने का कोई मतलब नहीं है। कानूनी सहायता प्रभावी होनी चाहिए।

कोर्ट ने जारी किया दिशा निर्देश
कोर्ट ने यह बात दुष्कर्म और हत्या के एक दोषी को पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में बरी करते हुए कही है। साथ ही अभियुक्त को मुफ्त कानूनी सहायता दिए जाने और आपराधिक मुकदमे में लोक अभियोजक (सरकारी वकील) की भूमिका के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

ये आदेश न्यायमूर्ति अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने उत्तर प्रदेश के एक मामले में 10 वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के दोषी अशोक की सजा के खिलाफ दाखिल अपील स्वीकार करते हुए सुनाया। निचली अदालत ने अशोक को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि हाई कोर्ट ने मृत्युदंड को जीवन पर्यंत कैद में बदल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 20 मई, 2022 को 13 साल जेल भुगतने के आधार पर उसे जमानत दे दी थी।

इस मामले में अभियुक्त अशोक ने अपना कोई वकील नहीं किया था। उसे वकील सरकार की ओर से मिला था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि जब गवाह के बयान दर्ज हुए उस समय अभियुक्त की ओर से कोई वकील नहीं था और आरोप तय होने के वक्त भी अभियुक्त का वकील नहीं था। साथ ही अभियुक्त से 313 के बयान के समय महत्वपूर्ण सामग्री नहीं रखी गई और न ही उससे संबंधित सवाल पूछे गए। और भी कई खामियां पाईं।

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