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संसदीय समिति करेगी लेटरल एंट्री मुद्दे की पड़ताल, विरोध के बाद सरकार को वापस लेना पड़ा था प्रस्ताव

नई दिल्ली। सरकारी विभागों में प्रमुख पदों को भरने के लिए ‘लेटरल एंट्री’ के मुद्दे की संसदीय समिति पड़ताल करेगी। इन पदों के लिए आरक्षण का प्रविधान नहीं किए जाने को लेकर इस साल की शुरुआत में राजनीतिक विवाद हो गया था।

लोकसभा सचिवालय द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार, कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति द्वारा 2024-25 में पड़ताल के लिए चुने गए मुद्दों में सिविल सेवाओं में ‘लेटरल एंट्री’ भी शामिल है।

यूपीएससी ने दिया था विज्ञापन
इस वर्ष अगस्त में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया था, जिन्हें अनुबंध के आधार पर ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भरा जाना था। इनमें से 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक एवं उप सचिव के पद थे।

इस विज्ञापन को लेकर विपक्षी दलों के साथ-साथ सरकार में शामिल लोजपा और जदयू जैसी सहयोगी पार्टियों ने भी विरोध जताया था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित कई नेताओं ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रविधान नहीं करने पर सरकार की नीति की आलोचना की थी।

2018 में शुरू की गई थी प्रक्रिया
इसके बाद सरकार ने यूपीएससी से विज्ञापन रद करने को कहा था। इन पदों के लिए भर्ती आमतौर पर सिविल सेवा परीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है, लेकिन ‘लेटरल एंट्री’ के जरिये सीमित अवधि के लिए सीधी भर्ती की जाती है। केंद्र सरकार में वर्ष 2018 से लेटरल एंट्री की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य विशिष्ट कार्यों के लिए विशेषज्ञों को नियुक्त करना है। वर्तमान में इन नियुक्तियों पर कोई कोटा लागू नहीं है। अब तक ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए 63 नियुक्तियां की गई हैं, जिनमें से 35 नियुक्तियां निजी क्षेत्र से हुई हैं। इस समय 57 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में पदों पर हैं।

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